मेरे स्कूल का किस्सा !!!

 

२३ जून १९८०                        

पाँचवी कक्षा की बात है।  स्कूल पहुँचने के बाद पहला घंटा भी पूरा नहीं हुआ था और छुट्टी वाली बेल बजी।  हम सब को  अचरज हो रहा था की अचानक यह क्या हो गया। क्लास टीचर मिस सचदेवा ने कहा की श्री संजय गांधी का निधन हुआ है तो स्कूल को छुट्टी दे दी गई है। लेकिन पहले ‘असेंबली’ मैं दो मिनट का मौन रखा जाएगा फिर आप लोग अपने घर जा सकते हैं।

मेरे लिए यह अनुभव आप सब के साथ साझा करना इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मुझे कुछ सिखा गया।  हमारी तब उम्र कितनी थी ? ११-१२ साल….किसी की मृत्यु पर हम सभी छात्रों ने दुख जताना लाजमी था। हम राजनीति समझें इतनी परिपक्वता हममें  नहीं थी। लेकिन देश की प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के पुत्र की मृत्यु एक विमान दुर्घटना में हुई है इतना तो हम सब को समझ में आया था।

बहरहाल हम सब एक कतार में शांत खड़े रहें ऐसा हमसे कहा गया। सिर्फ हमारी कक्षा ही नहीं पूरे स्कूल के छात्र आंखे बंद कर के शांत खड़े थे। इसके पहले भी इस तरह मौन खड़े रहने का कभी अनुभव आया था क्या? याद नहीं आता ….

दोस्तों, इस तरह बगैर  हिले-डुले दो मिनट मौन खड़े रहना हम सब के लिये शायद जानलेवा था….  या यूं कहिए हम  सब के लिए एक तरह की सज़ा थी।  इसी हालत में एक बुरी बात हुई….. शायद किसी की दबी आवाज में हंसी निकल गई !!! .... एक हंसा तो बाकी भी साथ हंस पड़े …. कम-से-कम गलत मौके पर हँसना नहीं चाहिए  …. ऐसी अकल या समझ तो हम में नहीं थी !!!    नतीजा भी बहुत बुरा हुआ …. परम आदरणीय  हेनरी मैडम का गुस्सा और डाँट मुझे  आज भी याद है। शायद कुछ लोगों उनके हाथ की मार भी पड़ी।

आज इतने वर्षों बाद मैं अपने बच्चों को यह घटना बताते वक्त मैं लज्जित होता हूँ …. लेकिन मेरे लिए ‘यह स्कूल की सीख’   उन्हें  बताना भी उतना ही आवश्यक समझता हूँ।

 

अमित नासेरी

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