चल अकेला ….. चल अकेला …. चल अकेला ….. भाग १

 

भाग १

लेख शुरू करते समय सबसे पहले इस कर्णमधुर गीत का आनंद लें……


परम आदरणीय कवि प्रदीपजी का लिखा, मुकेशजी का गाया, ओ.पी.नय्यर साहब का संगीतबद्ध संबंध फिल्म का यह गाना मै बचपन से सुनता आया हूं। यह गाना मुझे कुछ याद दिलाता है । भिलाई में सेक्टर ६ की कालीबाडी मंदिर के मैदान में प्रदर्शनी लगती थी । दशहरा – दीवाली के समय । उस प्रदर्शनी में एक करतब दिखाया जाता था जिसे सब मौत की छलांग कहते थे। इसमें एक व्यक्ति सीढियों द्वारा उपर चढ़ कर पानी से भरे कुंड में छलांग लगाता था ।  अब आप पूछेंगे इसमें इतनी खास बात क्या है ?

तो भाईसाहब वह व्यक्ति खुद को आग लगाता था और नीच पानी से भरे कुंड़  में भी आग लगाई जाती थी...पेट्रोल डालकर !!! ये महाशय उसमें छलांग लगाकर सही सलामत बाहर आते थे और सबकी वाहवाही लूटते थे। मेरे लिए यह भयावह दृश्य होता था। रोज रात नौ बजे। कभी कभी इसे भंभाड मौत की छलांग भी कहते थे । कुछ खास नहीं बस वह व्यक्ति पहले पटाखों फोडता था  और फिर खुद को आग लगाकर कुंड मे छलांग लगाता था।

इस करतब को विस्तृत रूप से समझने के लिए मैं   हाथी मेरे साथी फिल्म का यह दृश्य साझा कर रहा हूं। इसे गौर से देखें ।


आप यह सब देखकर और पढकर हैरान हो रहे हैं  की मैं  आखिर कौन सी बात बताना चाह रहा हूं ??

तो जनाब जब वह स्टंटमैन अपना करतब दिखाने के लिये तैयार होता था तब लाऊड स्पीकर पर यह गाना बजाया जाता था। आजभी यह गाना रेडियो पर जब भी बजता है तो वह प्रदर्शनी, वह मौत की छलांग ‘, पानी से भरे कुंड़  मे आग लगना….… ये सारे दृश्य मेरी आंखों के सामने नाचने लगते हैं । मैं  आज भी सिहर जाता हूं।

ये बात हुई फ्लॅशबॅक की……

अब वर्तमान में बात हो जाए…..

मैं  पर्यटन व्यवसाय से जुड़ा हूं। अभी परिस्थिती गंभीर है। कोरोना  ने सारा काम चौपट कर दिया है। मैं  और मेरे जैसे अनेक लोग और ढेरों  कंपनियाँ सिर्फ इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि  कब इस विषाणू से मुक्ति मिलेगी? अब तक की परिस्थिति देखते हुए इस विषाणू से तुरंत छुटकारा  फिलहाल मुश्किल है। यह कुछ समय अतिथि के रूप में  हमारे साथ रहेगा। जब तक असली टीका तयार हो तब तक क्यूँ न काढ़ा  पीकर अंदरुनी शक्ति को बढ़ाया  जाए ?

इस मौत की छलांग और हमारे पर्यटन व्यवसाय का एकसा नाता दिखता है। हम मेहमानों  को इस त्रासदी मे कहीं  भेजे तो मामला  खतरे से खाली नहीं । अपातकालीन स्थिति में  अगर किसी परिवार को सफर करना पड़े  तो ? इस परिवार मे अगर छोटे बच्चे हो और बड़े -बूढ़े  हों  तो हमारी जिम्मेदारी काफी बढ़  जाती है।

मौत की छलांग में  करतब दिखाने वाले व्यक्ति ने  खास कपड़े  पहन कर अपने खेल को लोगो के सामने रोज दिखाना था। उसके लिये ये हमेशा का काम था। उसी तरह हमें मेहमानों  को सफर पे भेजते समय सूरक्षित  रहने के उपायों  से अवगत कराना आज आवश्यक हो गया है। सरकार द्वारा बताए गये नियमों  का पालन जैसे की मास्क पहनना, सैनिटाइज़र  का उपयोग और सामाजिक दूरी बनाये रखना आज अनिवार्य हो गया है। ये बातें  अब हमारे जिंदगी का हिस्सा बन चुकी हैं ......और ये हमेशा बनी रहेंगी। आज होटल , रिसॉर्ट, रेस्टोरेंट , होमस्टे, फार्मस्टे में  जाते समय नियमावली का पालन ग्राहक और सेवा देनेवाले दोनों  के लिये जरूरी हो गया है।

मैं यहाँ  लिख रहा हूं और वहाँ  लोग आत्मनिर्भर हो चुके हैं । कुछ परिवार अपने सदस्यों  के साथ थर्मल गन, फेस मास्क और ऑक्सी मीटर से लैस होकर निकटतम पर्यटन स्थलों पर जाकर आ भी गए। यह एक उत्साहजनक   संकेत है !!! वे यात्रा करने की अपनी इच्छा पर अंकुश नहीं लगाना चाहते हैं .....और साथ ही वे यह नहीं चाहते हैं कि गंतव्य पर स्थानीय लोगों को संक्रमित करे या बदले में  संक्रमित हों । एहतियात बरतना अब नया नॉर्मल है भाईसाहब !!!

मुझे प्रकृति  के बीच में  रहना हमेशा से अच्छा लगता रहा है। लेकिन, मैं लॉक डाउन अवधि के दौरान निकटतम पार्क में  जाने को  तरस गया। इसी  दौरान मैंने  अपनी साइकिल से घूमना  शुरू किया।  जब भी मुझे लगता है, मैं तीन या चार किमी का एक छोटासा चक्कर लगाकर आता हूं। इस तरह से अकेले घुमने का आनंद लेना कभीभी  अच्छा।

आनेवाले दिनो में  शायद इस तरह अकेले पर्यटन पर जानेवालों  की संख्या बढ़ने  के आसार हैं । कुछ उदाहरण हैं  जो मुझे आप सबके साथ साझा करने हैं ...... अगले लेख तक बस थोड़ा रुकते हैं । मिलेंगे जल्द ही…….


अमित नासेरी

9422145190

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