नोम फेन – किसी फीनिक्स से कम नहीं !!!
क्या आपने किसी जगह पर एक ही समय में प्रसन्नता और व्याकुलता को अनुभव किया है ?
कंबोडिया की राजधानी नोम फेन में आपको इस तरह का अनुभव
मिलेगा।
टॉनले सैप और मेकाँग नदियों के संगम पर बसा यह एक खूबसूरत शहर किसी जमाने में अपने सामरिक महत्व की वजह से एक बड़ा व्यापारिक केंद्र था।
इतिहास
के पन्नों में झाँके तो अंगकोर स्थित खमेर प्रशासन पड़ोसी आयुथया
में स्थित शत्रुओं के निरंतर आक्रमण से
परेशान था। व्यापार में बढ़ोतरी को ध्यान में रखते हुए भौगोलिक दृष्टि से अंगकोर बहुत
कारगर सिद्ध नहीं हो रही थी। अपनी नई राजधानी के रूप में देश के मध्य भाग में
स्थित यह संगम स्थल भविष्य में चीन, इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ होने वाले
व्यापार के लिए अच्छा था। पंधरवी शताब्दी के बाद अंगकोर छोड़कर खमेर यहाँ आकर बस
गये। लेकिन इस वजह से अंगकोर स्थित तमाम मंदिर एकदम भुला दिये गये।
सोलहवीं शताब्दी में जाकर यह देश फ़्रांस के संरक्षण में आया। १९ वी सदी में अंगकोर फ़्रांस के ही एक व्यक्ति ने खोज निकाला। १९५३ में फ़्रांस से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बावजूद अमरीका-वियतनाम युद्ध का प्रतिकूल असर कंबोडिया पर पड़ा। पिछली सदी के अंत में संयुक्त राष्ट्र की निगरानी के बाद से कुछ शांति बनी ।
आज
नोम फेन एक आधुनिक शहर है। यहाँ के स्वतंत्रता स्मारक, राष्ट्रीय संग्रहालय, रूसी बाजार, राजा का प्रासाद और उसी प्रांगण के बगल में स्थित ‘व्हाइट
पगोडा’ को देखना अपने आप में एक बढ़िया अनुभव है। राष्ट्रीय संग्रहालय में पूरे देशभर
से उत्खनन किए हुए अंगकोर खमेर शासनकाल के दौरान की मूर्तिया और अवशेष बहुत संभाल कर
रखे गये हैं। सीम रीप के संग्रहालय के बाद
इस संग्रहालय में इन मूर्तियों को देखना इतिहास में रुचि रखने वाले किसी भी
व्यक्ति के लिए एक सुखद अनुभव है।
राष्ट्रीय संग्रहालय में भेंट देते वक्त आपको खमेर साम्राज्य काल की प्रचलित कला पर भारतीय असर ध्यान आता है। यहाँ आप शेषशाही विष्णु, गणेश, गौतम बुद्ध की मूर्तियाँ देखकर अचंभित होंगे। ‘व्हाइट पगोडा’ मंदिर परिसर में रामायण ‘ म्युरल ‘ स्वरूप में देखते बनता है ।
‘टौल सोऊँग जीनोसाईड’ संग्रहालय और ‘चोएउँग एक किलिंग फील्ड’ को भेंट देते हैं तब आप व्याकुल
और बेचैन होते हैं। इन दोनों जगहों पर आपका भेंट देना आवश्यक है। पोल पॉट के १९७५ -१९७९ शासन काल में खमेर रूश ने जिस बर्बरता से हजारों लोगों की हत्या की थी उसके ये दोनों जगह गवाह हैं। कभी यह स्कूल हुआ करती थी लेकिन खमेर रूश ने इसे एक जेल बनाकर यहाँ लोगों जैसे बच्चे, बूढ़े, जवान, मर्द हो या औरत इन सब को कैद किया, उन्हे घोर यातनाएं दी। बाद में शहर से लगभग ७-८ कि. मि. बाहर स्थित एक जगह पर इनकी हत्याएं की गई और वहीं दफन कर दिया गया। किसी को भी नहीं बक्षा।शहर के बाहर की यह जगह ‘चोएउँग एक किलिंग फील्ड’ के नाम से जानी जाती है। परिसर के भीतर आज एक स्मारक / स्तूप बना हुआ है जिसमें मृत लोगों के अवशेष रखे हुए हैं। यहाँ एक वीथिका में चित्रों के माध्यम से उस खूनी इतिहास की जानकारी ली जा सकती है। एक छोटी सी फिल्म भी दिखाई जाती है। आज आप यहाँ जब पैदल चलते हैं तो दिल दहल जाता है। कुछ भी हो जब आप नोम फेन आयें तो यहाँ भेंट देना जरूरी है।
खमेर
रूश के कुशासन का खामियाजा अंगकोर धरोहरों पर भी पड़ा।
बहुत सी मूर्तियाँ और मंदिर नष्ट हो गये थे। जो बचे उन्हें आज संग्रहालय
में बहुत संभाल कर रखा गया है।
मैंने इसके पहले सीम रीप की जानकारी देते समय आपको बारूदी सुरंगों से बचे हुए लोगों के बारे में बताया था। आज ‘टौल सोऊँग जीनोसाईड’ संग्रहालय की जानकारी देते समय उसी जेल में सजा काटने वाले और यातना झेलने के बाद भी जो बच गये थे, ऐसे लोग आपको उस दौरान की कहानियाँ बताते हैं।
कंबोडिया
की नई और पुरानी पीढ़ी की जानकारी में यह घटनाएं मायने रखती हैं और आज इतने वर्ष बीतने
के बाद भी कोई इसे भूल नहीं सकता । अंगकोर धरोहर को देखने पूरे वर्ष विश्व से लाखों पर्यटक तो आते ही हैं लेकिन यहाँ नोम फेन
में टॉनले सैप और मेकाँग नदी में शाम
के वक्त ‘बोट क्रूज’ का आनंद लेना उतना ही
मनोरंजक है।
विपरीत
परिस्थितियों पर मात देते हुए आज कंबोडिया पूरे विश्व के सामने एक उत्तम उदाहरण प्रस्तुत
कर रहा है।
अमित
नासेरी
9422145190
अमित बहुतही सुंदर विवरण, संक्षेपमें आपने बहुत सारी बात बतादी,आज चालीस साल बाद भी लोग जो इस बात से सेहमें और डरे हुएसे लगते है,यह अच्छी बात नहीं है,इसका मी जिक्र होना जरूरी हैं!
ReplyDeleteधन्यवाद .... कृपया अपना परिचय दें ..
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