चल अकेला .. चल अकेला .. चल अकेला .. भाग ३
भाग ३
पिछले दो भागों में मैंने आने वाले समय में अकेले सफर करने वालों की तादाद में बढ़ोतरी को ध्यान में रखते हुए अपने कुछ अनुभव साझा किये हैं। एक अकेली व्यक्ति – स्त्री हो या पुरुष, अगर अकेले ही सफर करना पसंद करे तो वर्तमान में यह उतना चुनौतीपूर्ण कार्य नहीं रहा। आज देश-विदेश में प्रवास और पर्यटन सेवा देनेवाली अनेक संस्थाएं ऐसे मेहमानों को काफी प्राथमिकता दे रही हैं।
पिछले तीन दशकों से मैं भारत के अलग अलग राज्यों में काम के सिलसिले में गया हूँ। अगर भाषा के
आधार पर देखें तो मेरा अनुभव दक्षिण भारत
के राज्यों में काफी कठिनाइयों से भरा था।
खासकर के दक्षिण भारत में अगर आप सफर कर रहें हों तो हिन्दी भाषा की जगह
आपको ज्यादातर अंग्रेजी भाषा पर निर्भर रहना पड़ेगा।
प्रवास तथा पर्यटन अभ्यासक्रम के हम सभी छात्र अध्ययन भ्रमण
के लिए दक्षिण भारत गये थे । आंध्र, कर्नाटक, तमिल नाडु और पुडुचेरी हमारे
कार्यक्रम का महत्वपूर्ण हिस्सा थे। इन
सभी जगहों में से तमिल नाडु राज्य में स्थानीय लोगों के साथ वार्तालाप करना
हम सभी छात्रों के लिए चुनौतीपूर्ण था। आगे व्यवसाय के सिलसिले में जब इन राज्यों
मे मेरा फिर जाना हुआ तो हिन्दी की जगह
अंग्रेजी भाषा में वार्तालाप ही एकमात्र तरीका था।
वर्षों बाद ये धारणा मुझे कुछ हद तक बदलनी पड़ी जब मैं केरल ट्रैवल मार्ट में एक प्रतिनिधि के
रूप में गया। यह मेरी सबसे अभूतपूर्व और रोचक यात्रा थी। नागपूर से एर्णाकुलुम का लगभग २९ घंटे का लंबा सफर था। फिर से मैं दूसरी श्रेणी के स्लीपर से यात्रा कर रहा था । तेलंगाना राज्य में प्रवेश करते ही परिदृश्य बदल जाता है। दक्षिण भारत की ओर जाने वाली सभी ट्रेनों में आमतौर पर जो आपके सह-यात्री होते हैं जो शायद ही कभी हिंदी बोलते हैं। अगर उन्हें अंग्रेजी समझ में नहीं आती है तो आपको उनसे संवाद करते समय संकेतवाली भाषा या इशारों पर निर्भर रहना पड़ता है। जब ट्रेन रात में तिरुपति पहुंची तो तीर्थयात्रियों का एक गुट सवार हुआ। इस गुट की वजह से थोड़ीसी अव्यवस्था हुई । लेकिन कोई शिकायत नहीं, मैं ऐसी प्रतिकूलताओं के लिए तैयार था। सुबह - सुबह वे कोयम्बटूर में उतर गये ।केरल राज्य में ट्रेन के प्रवेश करते ही फिर से परिदृश्य बदल गया। मैंने देखा कि केरल के लोग समान रूप से अंग्रेजी और हिंदी में संवाद करने के लिए तैयार थे। एक बार जब आप पर्यटन उन्मुख होते हैं और आप पूरे भारत के पर्यटकों का स्वागत करने के लिए तैयार हैं, तो हिंदी में वार्तालाप आपका महत्व बढ़ाता है। पूरे केटीएम में मैं अपने उत्तर भारतीय दोस्तों के साथ हिंदी में संवाद करने वाले केरल राज्य के विभिन्न सेवाभावी लोगों से प्रभावित था। जिस होटल में मैं रुका था, उसमें पूरे भारत से मेरे जैसे अनेक पर्यटन व्यवसाय से जुड़े हुए लोग रुके थे। हम सभी एक ही बस से साथ-साथ गए, विभिन्न प्रस्तुतियों को देखा, अनेकों स्टाल का दौरा किया, नाव की सवारी का आनंद लिया, नए संपर्क स्थापित किए और बदले में केरल राज्य के आतिथ्य का आनंद लिया।
हालांकि मैं
अकेला था लेकिन एक बार जब हमारे गुट के सदस्य वायनाड यात्रा के
लिए निकले तो हम
सब एक ही परिवार का हिस्सा बन चुके थे। दो रात तीन दिन का यह अनुभव सबसे यादगार रहा। अभी भी हम सब दोस्त दौरे के दौरान बनाए
गए व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से संपर्क में हैं। अकेले यात्रा के रूप में शुरू हुई यह यात्रा अनगिनत यादों
और कहानियों को साझा करने के साथ समाप्त हुई।
यात्रा प्रबंधक या ‘टूर मैनेजर’ के काम ने मेरे व्यक्तित्व में सकारात्मक बदलाव लाने में सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। टूर मैनेजर के रूप में मेरी पहली अंतर्राष्ट्रीय यात्रा सबसे यादगार तो रहनी ही थी । मुझे उस समूह में शामिल होना था जो एयर इंडिया पर सिंगापूर रवाना होने वाला था लेकिन किसी तकनीकी कारणवश मुझे दूसरी उड़ान में जाना पड़ा। मेरी टिकट श्रीलंकाई एयरलाइंस पर बनी जिसमें मुझे कोलंबो होते हुए सिंगापूर पहुंचना था । दोनों फ्लाइट सुबह आधे घंटे के फरक से सिंगापूर पहुँच रही थी। मैं मुंबई से कोलंबो पहली बार अंतर्राष्ट्रीय यात्रा से अवगत हुआ था। कोलंबो में एक छोटेसे विश्राम के बाद मैं दूसरे बड़े विमान में सिंगापूर के लिए रवाना हुआ हुआ। जब यह विमान सिंगापुर में उतरा, तो मेरा टर्मिनल अलग था और एयर इंडिया से मेहमान दूसरे टर्मिनल पर पहुँचने वाले थे।
मुझे दूसरे टर्मिनल पर पहुंचाने में चांगी हवाई अड्डे पर स्थित संकेत मददगार साबित हुए। यह एक
शानदार अनुभव था। मैं कम समय में दूसरे टर्मिनल पर पहुँचकर मेहमानों का स्वागत कर पाया। एयर इंडिया पर हैदराबाद से एक और परिवार आ रहा था और फिर से यह अलग टर्मिनल पर था। मेहमानों को स्थानीय गाइड के हवाले करके मैं रुक गया और हवाई अड्डे पर स्थित एक छोटी ट्रेन से उस टर्मिनल पर पहुँचा। मेरे पास उनका इंतजार करने के लिए लगभग तीन घंटे थे। समय का सदुपयोग करते हुए मैं सबसे पहले तरोताजा हुआ। सिंगापूर का चांगी हवाईअड्डा विश्वप्रसिद्ध है और अपने आप मे एक सुंदर गंतव्य स्थल है। अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए यह भव्य हवाई अड्डा आज विश्व में सबसे अग्रणी स्थान पर है। मैंने इस हवाई अड्डे के भीतर झरने को देखा। सेल्फी लेने का यह एक आदर्श स्थान है ।बाद में परिवार के
आगमन के साथ हम सब दूसरे वाहन से ‘सिंगापुर फ़्लायर’ मे स्थित समूह में शामिल होने के लिए रवाना हुए। यह यात्रा यादगार थी क्योंकि मुझे ‘बैक टू बैक’ समूहों का प्रबंधन करना था। अपनी जिम्मेदारी
को पूरा निभाकर मेरी वापसी यात्रा फिर सिंगापूर – कोलंबो - मुंबई विमान से हुई …. अकेले !!!
मेरी कंबोडिया – व्हिएतनाम यात्रा की वापसी भी ऐसा ही एक बढ़िया अनुभव देकर गई । मैं एक गुट के साथ पूरे ११ दिन ‘टूर मैनेजर’ की जिम्मेदारी निभाकर बैंकॉक के सुवर्णभूम हवाईअड्डे से अलग हुआ। मेरी उड़ान बैंकॉक – कोलकाता थी और फिर वहाँ पहुंचकर हावड़ा से नागपूर ट्रेन से रवाना होना था। नागपूर में जब मैं घर पहुँचा तो लगभग २६ घंटे की यात्रा हो चुकी थी ।
इन यात्राओं ने
मुझे बहुत सारे सकारात्मक अनुभव दिये हैं। यह निश्चित रूप से आपका आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद करता है। जितने भी मेरे सहयात्री थे वह आज भी संपर्क में हैं और अब अगले सफर की योजना बन रही है।
कोविद १९ महामारी के दौरान
या बाद में, हम सबका यात्रा करने का तरीका बदलेगा। कोरोना ने हमें एक जिम्मेदारी से भरा पर्यटन करने के साथ-साथ अधिक सतर्कता
बरतने पर मजबूर कर दिया है। मास्क पहनना, सैनिटाइज़र का उपयोग करना आवश्यक हो गया है। गंतव्य स्थल के होटल की पूर्व जांच करना जरूरी हो गया है जहां
उचित स्वच्छता और स्वच्छता के मानदंडों का कड़ाई से पालन किया जाता हो । दर्शनीय स्थलों की यात्रा, भोजन और स्थानान्तरण, स्थानीय ट्रेनों या बसों में यात्रा करते वक्त हमें सावधानी बरतनी होगी।
कुछ भी कहिये इस ‘अकेले’ के सफर में हम सब कहीं-न-कहीं खुद को खोजने में सफल हो जाएं तो वह यात्रा चिरस्मरणीय हो जाएगी।
अमित नासेरी
९४२२१४५१९०
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