कंबोडिया - एक अनूठे 'सुर संगम' से परिचय !!!

हम सभी सीम रीप  में ऐमज़ान अंगकोर रेस्टोरेंट में 'अप्सरा नृत्य' देख रहे थे । सबसे अच्छी बात, यहाँ पर नृत्य के साथ-साथ हम सभी  खमेर व्यंजनों का लुत्फ भी उठा रहे  थे।  ऐसा  शायद पहली बार था  जब मैं रात के खाने के समय किसी देश की संस्कृति को करीब से देख रहा था।  हमारे जैसे अनगिनत पर्यटक सामने  मंच पर   कंबोडियाई कलाकारों की इस अनूठी प्रस्तुति को देखकर मंत्रमुग्ध हो रहे थे। 

मैं यात्रा प्रबंधक की जिम्मेदारी निभाते हुए इस समूह के साथ सुबह हवाई जहाज से सीम रीप पहुँचा था  । शाम का कार्यक्रम तय था। हर कोई रात के खाने के साथ अप्सरा' नृत्य का आनंद लेना चाह रहा था । यकीनन यह  कंबोडिया देश के आतिथ्य और संस्कृति को देखने का एक अनूठा तरीका था। यहां ‘डिनर’ का आनंद लेते हुए अप्सरा नृत्य देखा जा सकता है। कार्यक्रम की अवधि लगभग दो घंटे थी । खमेर खाद्य संस्कृति को ध्यान में रखते हुए स्वादिष्ट व्यंजन बुफे में खूबसूरती से रखे थे।  चूंकि इसे खाना एक  नया अनुभव था, इसीलिए सभी ने शुरुआत में सलाद, शाकाहारी सूप, फल, टोफू और स्थानीय सब्जियों से बने हुए व्यंजन चखे


अप्सरा नृत्य हाथ, गर्दन, कमर और पैर के नाजुक हरकतों और हावभावों का अभूतपूर्व प्रदर्शन है। नृत्य करने वाली युवतियों ने  सिर  पर एक आकर्षक मुकुट पहना  था और उसी से मेल खानेवाली  पारंपरिक रंगीन पोशाक उन्होंने शरीर पर  परिधान किया था । मंच के एक तरफ एक मण्डली बैठी थी। उसमें से कुछ कलाकार गया रहे थे और बाकी   पारंपरिक खमेर संगीत वाद्यों के साथ संगत कर रहे थे । अप्सरा नृत्य के साथ-साथ कुछ लोक कथाओं, कुछ पारंपरिक कृषि और  कुछ फसल की कटाई के समय के नृत्यों का मंचन किया गया।
मैं गानों के बोलों को समझ नहीं पाया लेकिन वहाँ कलाकारों द्वारा बजाए जाने वाले पारंपरिक संगीतवाद्यों  ने मेरा ध्यान
खींचा । ये हमारे भारतीय
संगीतवाद्यों से मिलते जुलते थे। आप उन्हें दूर के चचेरे भाई कह सकते हैं।  उनमें से कुछ जिन्हें मैं पहचान सकता था वे थे बांसुरी ( खल ), तार वाद्य (ट्रोल खमेर), कुछ ताल वाद्य विशेष रूप से हाथों से बजाए जाने वाले थे, एक खमेर जाइलोफोन (रोनियट) भी था।  इनका उपयोग  आम तौर पर शाही कार्यक्रमों, शादियों और त्योहारों के दौरान किया जाता है ।

अपने देश की संस्कृति को पर्यटकों के सामने पेश करने का यह तरीका  निश्चित रूप से सराहनीय है !!!

मैं यूट्यूब  पर या टेलीविज़न चैनलों पर पारंपरिक संगीत रूपों और सुदूर पूर्वी देशों के संगीतवाद्यों को अक्सर देखता रहा हूं। इनकी संरचना थोड़ी अलग हो सकती है और इनके सुर कानों को अलग लग सकते हैं। जैसा कि स्पष्ट है, पश्चिमी पॉप संस्कृति ने इन सभी वाद्यों का अस्तित्व  बहुत हद तक खतम  कर लिया है। क्या आपको हिंदी फिल्म ‘लव  इन टोक्यो’ के मशहूर गाने ‘ सयोनारा’ में बजाए गए वाद्ययंत्र याद हैं ?

मैं काफी समय से ‘टूर मैनेजर’ के रूप में काम कर रहा हूं और खुद  को सौभाग्यशाली मानता हूँ। अलग-अलग गुटों के साथ मेरा संपर्क हुआ। इनमें से आज कुछ मेरे करीबी दोस्त हैं । इन लोगों ने ‘टूर मैनेजर’ के रूप में मेरे व्यक्तित्व को बदलने और बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अब तक मैंने थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर और दुबई में विभिन्न समूहों के साथ कई दौरे किए हैं।

पुणे से श्री चारुहास कुलकर्णी के नेतृत्व में पंद्रह लोगों का एक समूह नागपुर में पेगासस हॉलिडेज़  की  सुश्री एरिका कर और श्रीमती वसुधा कुलकर्णी के संपर्क में था। वे कंबोडिया में सीम  रीप की यात्रा करने की योजना बना रहे थे ।  दौरा  शुरू होने से पहले मेरा  समूह के साथ  परिचय कराया गया था मैंने देखा कि उनमें से हर एक कंबोडिया के बारे में किताबें पढ़कर पूरी तरह से तैयार था ।

सीम रीप में आने का मुख्य उद्देश्य अंगकोर मंदिरों के इन विश्व प्रसिद्ध समूह को देखना और उनमें से खूबसूरत तस्वीरों को अपने कैमरे में कैद करना था। इन सब में सबसे महत्वपूर्ण, भारत से बाहर दुनिया में सबसे बड़े  हिंदू मंदिर अंगकोर वाट को देखना । इस ऐतिहासिक ‘कंबोज देश’ को जानना, पोल पॉट युग के समय के ‘कम्पुचिया’ के इतिहास को देखना  और फिर ‘कंबोडिया’ नाम के आधुनिक देश की प्रगति को  देखने के बाकी विषय हमारे  कार्यक्रम का हिस्सा थे।

अप्सरा नृत्य’ के समय बजने वाले संगीतवाद्य और उस में  से निकले हुए मधुर सुरों ने हमें  प्रभावित किया था।  लेकिन आने वाले चार दिनों में इन सुरों से हमारा नित्य का परिचय होता रहेगा,  यह धुनें हमारी स्मृति में घूम सकती हैं और सभी पर स्थायी प्रभाव छोड़ सकती हैं,  इस बात की हम में से किसी ने भी  अपेक्षा नहीं की थी। 

हमारी यात्रा शुरू हुई बानते सामरे मंदिर से। जब हम यहाँ पहुंचे तो हमारे कानों को फिर यह परिचित सुर सुनाई दिये।   जैसे-जैसे हम करीब आते गए , हमने देखा कि कुछ लोग इन उपकरणों को बजाते हुए मंदिर की ओर जाने वाली सड़क के किनारे बैठे थे। पास पहुँचने पर हम सब चौंक गये। वहाँ जितने भी बैठकर संगीत वाद्य  बजा  रहे थे उनमें से कुछ के हाथ नहीं थे, कुछ के पैर  नहीं थे, कुछ अंधे थे .... लेकिन हर कोई आसानी से वाद्ययंत्र बजा रहा था !!!

वहाँ बगल में एक बैनर लगा था। उसमें उल्लेख किया था  'कंबोडिया बारूदी सुरंग से  बचे हुए लोग और उनका  संगीत बैंड' । उनके सामने एक बड़ा सा  कटोरा रखा था  जिसमें  पर्यटक पैसा  दान कर रहे थे । मैंने पहले कंबोडिया का इतिहास पढ़ा था और खमेर रूश  द्वारा किए गए नरसंहार के बारे में पढ़ा था। बस उसी बात का यह ‘सुरों से सजा वीभत्स उदाहरण’ मेरे सामने था। पड़ोसी देश  वियतनाम में संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ युद्ध ने कंबोडिया को प्रभावित किया। उसी अवधि के दौरान कई नागरिक मारे गए थे। कुख्यात पोलपोट के चार साल के शासन (1975-1979) और उनके समूह खमेर रूश  ने लाखों लोगों को मार डाला। इसे कंबोडिया और मानव जाति के इतिहास में एक काला धब्बा माना जाता है ।

युद्ध के दौरान  खमेर रूश के  सैनिकों ने पूरे देश में बारूदी सुरंगें बिछाई थीं। इसकी चपेट  में आकर बहुत सारे नागरिक मारे गए। इन बारूदी सुरंगों से जो बच गये उनमें से  की वजह से कुछ के हाथ, पैर और आंखें चली गईं । कई बच्चे इन बारूदी सुरंगों के शिकार हुए । मैं नीचे एक विडिओ साझा कर रहा हूँ। 


इस  संगीत ने  एक ही समय में बेचैन और परेशान कर दिया । उनसे बात करते हुए हमें पता चला कि इन ‘संगीत बैंडों’ को अब कंबोडिया के लोक गीतों और लोक संगीत का अंतर्राष्ट्रीय राजदूत माना जाता है। बारूदी सुरंगों से बचकर इन लोगों ने संगीत को अपनाया और आज मंदिर आने वाले पर्यटकों का यह मनोरंजन कर रहे हैं।  इस कला के प्रदर्शन करने से उन्हें अपने घर चलाने के लिए अल्प आय प्राप्त होती है ।

हमें यह भी पता चला कि इतने वर्षों  के बाद भी देश में बारूदी सुरंगे अभी भी मौजूद हैं। आज भी लोग उसका शिकार हो रहे हैं।  अंगकोर मंदिर में आने वाले अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों की संख्या को देखते हुए इन पीड़ितों  के लिए यह एक रोजगार का स्रोत है । उनमें से कुछ एक दिन में चार से छह सौ रुपये कमाते हैं।  एक और अच्छी बात - अब यही लोग पर्यटकों को इन पारंपरिक खमेर संगीत वाद्ययंत्रों को बजाने का प्रशिक्षण भी दे रहे हैं।

   

अगले चार दिन, जहां भी हमारा समूह गया, हम इन बारूदी सुरंगों से बचे लोगों को देखने से नहीं चूके । हम उन्हें मंदिर के मुख्य द्वार पर पा सकते थे , आम तौर पर पांच या छह लोगों का एक समूह जो इन उपकरणों के माध्यम से संगीत का जादू बिखेर रहे थे। ये मधुर ध्वनि मंदिर के अंदर चलने के दौरान सुनी जा सकती थी। अंगकोर वाट, अंगकोर थॉम, ता प्रोम , बानते कड़ई , ता सोम,  बानते  श्री .. ... हम जहाँ  भी गये …. यह संगीत हमारे साथ-साथ आया !!!

 एकमात्र जगह जहां मैं इस संगीत  के माधुर्य को वायुमंडल के साथ सम्मिश्रित होते हुए महसूस किया  वह जगह थी ‘निक पीन’। जब आप इस जगह के रास्ते पर होते हैं , तो आप सबसे पहले संगीतकारों से मिलते हैं, फिर आप पानी पर बने एक लकड़ी से बने हुए पल से  गुज़रते हुए एक ऐसी जगह पर पहुँचते हैं जहाँ आपको बीच में एक बड़े कुंड़  के आसपास चार छोटे पानी के कुंड़  का एक समूह मिलता है । यह स्थान हरे पेड़ों से घिरा हुआ है और इसमें एक सुखद एहसास है। चारों तरफ की यह हरियाली , बड़े पैमाने पर जलक्षेत्र और कहीं दूर से अपने कानों पर पड़ने वाले सुर  मेरे लिए आनंद का सबसे शुद्ध रूप है। मेरे दृष्टिकोण से, यह एक दिव्य अनुभव था।

लोगों के साथ बातचीत करते हुए  मुझे ‘अकि रा’ नामक  एक व्यक्ति के बारे में पता चला, जिसने बारूदी सुरंगों का पता लगाने और उन्हें निरस्त्र करने का यह कठिन काम किया था। इससे पहले उन्हें खमेर रूश  द्वारा बाल सैनिक के रूप में भर्ती किया गया था । बाद में, उसी व्यक्ति ने इन सभी बारूदी सुरंगों की खोज शुरू कर दी ।  अकि रा इन सभी बेकार बारूदी सुरंगों को एक स्थान पर लाया और संग्रहालय का निर्माण किया। उन्हें स्थानीय सरकार और विदेशी संगठनों से मदद मिली। इससे उत्पन्न आय का उपयोग उसी परिसर में रहने वाले अनाथ बच्चों  की देखभाल के लिए किया जाता है । आज भी अकी रा इन बारूदी सुरंगों को पता लगाने और उन्हे निरस्त करने में व्यस्त है !!!

कंबोडिया  सरकार ने न केवल इन पीड़ितों के लिए आधार के रूप में मंदिर के बाहर जगह प्रदान की है , बल्कि सीम रीप के शहर के बाजारों में भी जगह दी है । यह प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय है।

सीम रीप में  चार दिनों के प्रवास के दौरान  मैं स्थानीय लोगों के साथ संपर्क में आया, मंदिरों , बाजारों, संग्रहालयों और खमेर रेस्तरां का दौरा किया जहां हमने खमेर खाद्य संस्कृति के बारे में सीखा। स्थान के महत्व को ध्यान में रखते हुए, यहाँ के लोग  अपने देश के इतिहास से अच्छी तरह वाकिफ हैं और पर्यटकों को उपयुक्त जानकारी प्रदान करते हैं ।

इन स्वाभिमानी लोगों के प्रति मेरा आदर निश्चित रूप से बढ़ा है और उनके जज़्बे को मेरा सलाम। ये सचमुच कंबोडिया देश के पारंपरिक संगीत और लोकगीतों के राजदूत हैं। इनकी मधुर धुने आज भी मेरे कानों में गूँजती हैं।

मेरा पसंदीदा शौक नए देशों को देखने के साथ-साथ नए अनुभव प्राप्त करना है।  मुझे पुणे से इन दोस्तों के समूह के साथ जाने का सौभाग्य मिला।  सबसे महत्वपूर्ण बात, जैसे-जैसे दौरा आगे बढ़ा, मैं उनके समूह का हिस्सा बन गया और बहुत आनंद आया  । मेरी मातृभाषा मराठी है और समूह पुणे से था, सभी मराठी में पारंगत थे। पेगासस हॉलिडेज़ की  एरिका मैडम  की सलाह मेरे बहुत काम आई।  उनके  अनुसार समूह के साथ जाने का यह मुख्य कारण था । यह एक अच्छा अवसर था और मुझे काफी नई बातें देखने और सीखने को मिलीं।

 

  

अमित नासेरी

9422145190

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