मुर्गे की बांग !!
नागपूर मे मई की सुबह नागपुर। अलार्म बजने के पहले ही नींद खुल गई । नींद खुलने की वजह एक आवाज। मजे की बात यह है कि यह आवाज बहुत जानी पहचानी थी। फिर भी आँख मलते हुए आवाज पर ध्यान दिया ......अरे ये तो मुर्गे की बांग है !!! 😀
इतने सालों से नागपूर के देव नगर में रहते हुए मैंने यह आवाज कभी नहीं सुनी। इस मुर्गे की आवाज हर दो मिनट मे सुनाई दे रही थी । मैं एक दफा बालकनी में जाकर देखने का प्रयास भी किया लेकिन कुछ नहीं दिखा।
दूध लेने के लिए घर के सामने स्थित दुकान पर गया। तब भी आवाज आ रही थी। दुकानदार भी हैरान, आवाज तो आ रही थी लेकिन मुर्गा नजर नहीं आ रहा था। घर पहुंचने पर मैंने अपने बड़े बेटे यश को पुछा की तुमने मुर्गे की आवाज सुनी क्या? वह अपने कॉलेज के वेबिनार पर ध्यान दे रहा था, उसे मुर्गे की आवाज मे कोई रुचि नहीं थी। लॉकडाउन की वजह से सभी महाविद्यालय बंद थे और पढ़ाई वेबिनार के माध्यम से शुरू थी। मुझे फिर भी पूरा विश्वास था उसने आवाज सुनी जरूर होगी ।
मैं
अपने काम मे
लग गया।मेरी पत्नी संपदा ने
जब यह कहा की मुर्गे की आवाज आ रही है तो मैंने हां कहा
लेकिन उसे भी दिखाई
नहीं दिया। सुबह
की चाय की चुसकियों के बीच
मेरे कानों में लगातार आवाज
आ रही थी। लगभग ढाई
घंटे के बाद आवाज शांत हुई।
मैंने
बस अपने दोस्त को फोन पर घटना
के बारे में बताया। उन्होंने
मजाक में कहा कि आपके देवनगर
में किसी ने 'आत्मनिर्भर'
बनने
की ठान ली है और घर पर ही पोल्ट्री
सेंटर शुरू कर दिया है।
यह
सच हो या न हो...
लेकिन
आज सुबह की शुरुआत ऐसे
कैसे हुई??
हो
सकता है आप सब मेरी बेचैनी को
न समझें। लेकिन इस आवाज
मे ऐसा क्या खास था ?
आपको
बता दूँ ,
यह
आवाज मुझे मेरे बचपन में वापस
ले गई।
मेरा
बचपन भिलाई में गया
था। हम सेक्टर 6
में
रहते थे। सेक्टर 6
में
हम जहां रहते थे वह एक
तीन मंजिला बिल्डिंग
थी। इस बिल्डिंग
मे १८ परिवार रहते थे। बड़ा ही
खूबसूरत परिसर था। वैसे
ही हमारे बिल्डिंग के पीछे
भी उसी तरह की बिल्डिंग थी।
दोनों बिल्डिंग के
बीच खेलने लायक काफी जगह थी।
ऐसे
ही एक परिसर में हम पहली मंजिल
पर एक क्वार्टर में रहते थे,
और
हमारी मंजिल पर परिवार के अन्य
सदस्य भी थे। तेलुगु,
पंजाबी,
बिहारी,
उड़िया,
बंगाली,
छत्तीसगढ़
और मलयालम जैसे परिवार सद्भाव
में रहते थे। यह कहना सही
होगा की भिलाई एक छोटा भारत
था। हमारा हम
उम्र के लड़के और लड़कियों
का एक अच्छा समूह था। खेलना
कूदना झगड़ना आम बात थी।
अब
सबसे खास बात पर आता हूँ । हमारे
बिल्डिंग मे नीचे रहने वाले
मलयाली परिवार अपने घर में
मुर्गियों को पालने के लिए
जगह का फायदा उठाते थे और उनमें
से कुछ के पास गाय और भैंस जैसे
पशुधन भी थे। परिसर के बीचों-बीच
दिन भर मुर्गियां घूमती रहती
थीं। मुझे इसका अवलोकन करना
अच्छा लगता है और मुझे यह कहने
में कोई आपत्ति नहीं है कि
यहीं मुझे निरीक्षण
करने की आदत यहीं पर लगी।
मुर्गियाँ अक्सर मलयाली परिवार और अन्य परिवारों के बीच झगड़े का कारण बनती थीं और उस चक्कर मे बाकी लोगों का मनोरंजन होता था ।
इनमे हर घर मे मुर्गियों के समूह का लीडर एक मुर्गा हुआ करता था। मुर्गियों की आवाज का 'शक्तिप्रदर्श' सुबह से ही शुरू हो जाता था। होते होते यह एक चेन रिएक्शन की तरह पूरे परिसर मे फैल जाता था । आमतौर पर दो या तीन मलयाली परिवार निचली मंजिल के क्वार्टर में रहते थे और प्रत्येक के पास एक छोटा पोल्ट्री केंद्र होता था। अक्सर दोनों बिल्डिंग के बीच मे मुर्गियाँ आपस में झगड़ती थीं।
इनकी देखा-देखि, मलयाली परिवार आपस में उनकी भाषा में बहस करते थे। हम पहली मंजिल पर रहने वालों के लिए यह बहुत मजेदार अनुभव हुआ करता था।
मजा
तो तब दुगना हो जाता जब यह दोनों
परिवार आपस मे हिन्दी मे झगड़ना
शुरू कर देते थे (झगड़े
का कारण हमें समझाने के लिए)।
भाई उनसे ये देखा नहीं जाता
था की why
only they should have fun ?😁😁
वैसे
भी सभी बिल्डिंग मे
सारे परिवार एक साथ खुशी-खुशी
रहते थे। हमें हर घर में उत्सवों
को देखने और अनुभव करने का
अवसर मिला। होली,
दिवाली
और क्रिसमस धूमधाम से मनाया
गया। यहीं पर हमें कॉलोनी में
रहने के प्रबल संस्कार मिले।
अब
सुनिए एक मजेदार किस्सा...
समय
होने पर उसी परिवार
की एक मलयाली आंटी अपने ठेठ
सातवेंसुर मे 'उडी
बे बे बे बे'
करके
मुर्गियों को बुलाती थीं। वे
शोर करते थे और परिसर में
इधर-उधर
बिखरे मुर्गियों और उसके चूजों
के साथ उसकी ओर दौड़ते थे।
मस्त सीन हुआ करता था। फिर
आंटी सभी को घर ले
जाती थी । मैं आज
भी, उस
आवाज की नकल कर सकता
हूँ । कसम से !!!😎
चूंकि
भिलाई सेक्टर में कई पेड़ हैं,
पक्षियों
को देखना और उनकी आवाज सुनना
मेरा शौक था। इधर नागपुर में
लॉकडाउन के चलते सुबह पक्षियों
की आवाज सुनी जा सकती है लेकिन
एक कोयल की
आवाज ही सबसे मधुर होती है।
मै
चाहता हूँ की जो आनंद मैंने
बचपन मे लिया वह मेरे बेटे भी
लें ....
सुकून की बात यह है कि उन्हें संगीत से प्यार है।
बड़ा
बेटा यश और छोटा चिराग हारमोनिका,
बांसुरी,
तबला,
बोंगो,
माउथ
ऑर्गन,
गिटार
जैसे वाद्य बजा सकते हैं।
मुझे कभी-कभी
लगता है कि अपने आस-पास
के पेड़ों पर पक्षियों की
दुनिया को देखकर और उनकी आवाज
सुनकर उन्हें प्रेरणा मिलनी
चाहिए और संगीत में आगे बढ़ना
चाहिए।
आज
एक मुर्गे की बाँग की
वजह से मै आप सबके साथ बचपन के
अनुभव साझा कर पाया। अब
उम्मीद है कि इसके बाद भी मुर्गा
आएगा....अलार्म
बजने से पहले...
हमेशा
की तरह!!!
अमित
नासेरी
९४२२१४५१९०
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